मेरा भी एक चांद हुआ करता था

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हा दोस्तो, इन सितारो की भीड मे मेरा भी एक चांद हुआ करता था.. 

जिंदगी मे आने वाले अंधेरी रातो को अपने उजाले से रोशन करता था.. इश्क, प्यार, मोहब्बत, जो भी हो बडी शिद्दत से निभाता था.. अपने जज्बातोंको बया करके मेरी रूह को गले लगाता था.. कभी ओस पडी इन अंखोंको समंदर बनाता था.. कभी खुद दर्या बनकर मुझे भिगाता था.. उसके ख्वाबोंके मेहफिलोंमे ओ मुझे बुलाता था.. प्यास बहोत थी उसको मुझसे बुझाता था.. चांद सिर्फ किसी एक का नही होता ये बात भुलाता था..चांद होकर भी ओ मुझे अंदर-अंदर ही जलाता था..  


हा दोस्तो, इन सितारो की भीड मे मेरा भी एक चांद हुआ करता था.. 

जिसकी मोहब्बत मे मैं हर रोज मरता था.. अंधेरी रातों मे समंदर बनी अंखोको जगाता था.. नजाने कौन-कौन से अंजान रहोंसे से गुजरता था.. चलते चलते चाँद की तलाश मे बार-बार फिसलता था.. बंजर जमीपे कडी धूप मे नंगे पाव निकलता था.. तुटे दिल के अंदर नजाने कितने दर्द संभलता था..  समशान मे जाकर जीते जी अपनी चिता सजाता था.. चांद सिर्फ मेरा नही ए बात खुद को समझाता था.. बेबसी की आग मे गुमनामी का जेहर पिकर चुपचाप रेहता था..


हा दोस्तो, इन सितारों की भीड मे मेरा भी एक चांद हुआ करता था..


- स्वप्नील घुटूगडे..


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