अब मेरे पास मेरे स्वयं के लिए भी वक़्त नहीं है।
या यूं कहो मै अपना सामना नहीं करना चाहता।
मैंने छिपा लिया है अपने मुस्कान के पीछे अपना दर्द,
जैसे शहर की बड़ी इमारतें ढक लेती है,
गरीबों की बस्तियों को।
मैं बेहद मजबूत होने का भी ढोंग ही कर रहा हूं,
जैसे कछुआ छिपा लेता है अपने आप को
बाहरी कठोर सतह के अंदर।
मैं सहेज के रख रहा तुम्हारी यादें,
अपनी किताबो के पन्नों के मध्य।
तुम्हें जाना है तो मैं रोकूंगा नहीं तुम्हे,
पर तुम चली जाओ मै यह भी नहीं चाहता।
तुम्हारे फैसले तुम्हे लेने है।
तुम्हारे पास वापस लौट आने का
विकल्प हमेशा रहेगा।
मै तुम्हारे लौटने का इंतज़ार करूंगा,
मुस्कुराते हुए, किसी किताब के साथ।
- Abhishek Singh